मर Poetry (page 17)

हुबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का

हैदर अली आतिश

ग़ैरत-ए-महर रश्क-ए-माह हो तुम

हैदर अली आतिश

वो हसीं बाम पर नहीं आता

हफ़ीज़ जौनपुरी

वस्ल आसान है क्या मुश्किल है

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस

हफ़ीज़ जौनपुरी

दुनिया में यूँ तो हर कोई अपनी सी कर गया

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के

हफ़ीज़ जौनपुरी

दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया

हफ़ीज़ जौनपुरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना

हफ़ीज़ जालंधरी

चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं

हफ़ीज़ जालंधरी

सच ही लिखते जाना

हबीब जालिब

मेरी बच्ची

हबीब जालिब

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी

हबीब मूसवी

गर मैं नहीं तो दर्द का पैकर कोई तो है

हबीब कैफ़ी

जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो

गुलज़ार देहलवी

फ़लाह-ए-आदमियत में सऊबत सह के मर जाना

गुलज़ार देहलवी

वो जो शाएर था

गुलज़ार

शहतूत की शाख़ पे

गुलज़ार

देखो आहिस्ता चलो

गुलज़ार

शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस नाज़ से वाह हम को मारा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्म

गोपाल मित्तल

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

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