मर Poetry (page 26)

शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए

असग़र गोंडवी

मजाज़ कैसा कहाँ हक़ीक़त अभी तुझे कुछ ख़बर नहीं है

असग़र गोंडवी

एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है

असग़र गोंडवी

ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा

असर सहबाई

आप बिक जाए कोई ऐसा ख़रीदार न था

असर लखनवी

जो लोग रातों को जागते थे

असअ'द बदायुनी

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

कभी जो उस की तमन्ना ज़रा बिफर जाए

अरशद कमाल

क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख

अरशद जमाल 'सारिम'

हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

अरशद अली ख़ान क़लक़

फिर हुनर-मंदों के घर से बे-बुनर जाता हूँ मैं

अर्श सिद्दीक़ी

बस इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत

अर्श मलसियानी

ग़रीब-ए-शहर तो फ़ाक़े से मर गया 'आरिफ़'

आरिफ़ शफ़ीक़

जो अपनी ख़्वाहिशों में तू ने कुछ कमी कर ली

आरिफ़ शफ़ीक़

तुम्हारी याद तारी हो रही है

आरिफ़ इशतियाक़

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

आरिफ़ अब्दुल मतीन

हवस-परस्ती ओ ग़ारत-गरी की लत न गई

अक़ील शादाब

हवस का रंग चढ़ा उस पे और उतर भी गया

अक़ील शादाब

लोग सदमों से मर नहीं जाते

अनवर शऊर

आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा

अनवर शऊर

लेकिन

अनवर सेन रॉय

ब'अद-अज़-मर्ग

अनवर सेन रॉय

अपने लिए एक नौहा

अनवर सेन रॉय

हवा के साथ उड़ जाएगा पानी

अनवर ख़ान

दर्द उरूज पर आ जाए तो

अनवार फ़ितरत

शिकस्ता-पा ही सही दूर की सदा ही सही

अनवार फ़िरोज़

नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

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