महफ़िल Poetry (page 20)

क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में

हबीब जालिब

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

हबीब मूसवी

आज उन्हें देख लिया बज़्म में फ़र्ज़ानों की

हबाब तिर्मिज़ी

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब

गुहर खैराबादी

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

फ़क़त इक शग़्ल बेकारी है अब बादा-कशी अपनी

गोपाल मित्तल

उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

मिल नहीं पाती ख़ुद अपने-आप से फ़ुर्सत मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

पत्थर

ग़ज़नफ़र

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

ग़नी एजाज़

अक्स की कहानी का इक़्तिबास हम ही थे

ग़ालिब इरफ़ान

ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

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