मिल नहीं पाती ख़ुद अपने-आप से फ़ुर्सत मुझे
मुझ से भी महरूम रहती है कभी महफ़िल मिरी
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कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है
रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है
सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा
अभी शब है मय-ए-उल्फ़त उण्डेलें
कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ
होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी
मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी
मैं एक मुद्दत से इस जहाँ का असीर हूँ और सोचता हूँ
हिकायत-ए-इश्क़ से भी दिल का इलाज मुमकिन नहीं कि अब भी