महफ़िल Poetry (page 35)

बहार आएगी गुलशन में तो दार-ओ-गीर भी होगी

अफ़सर माहपुरी

अजीब चीज़ मोहब्बत की वारदात भी है

अफ़सर माहपुरी

बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी

अफ़ीफ़ सिराज

आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है

अफ़ीफ़ सिराज

होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था

आदिल मंसूरी

रह-ए-हयात में जो लोग जावेदाँ निकले

अदील ज़ैदी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़

अदीब सहारनपुरी

कोई नालाँ कोई गिर्यां कोई बिस्मिल हो गया

अबुल कलाम आज़ाद

क्यूँ असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार-ए-क़ातिल हो गया

अबुल कलाम आज़ाद

इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है

अबुल कलाम आज़ाद

जो नहीं लगती थी कल तक अब वही अच्छी लगी

अबसार अब्दुल अली

न पूछो जान पर क्या कुछ गुज़रती है ग़म-ए-दिल से

अबरार शाहजहाँपुरी

आगे बढ़ने वाले

अबरार अहमद

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

आप करिश्मा-साज़ हुए हैं होश में है दीवाना भी

आबिद नामी

आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था

अब्दुस्समद ’तपिश’

नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था

अब्दुल्लाह जावेद

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

अब्दुल वहाब यकरू

दिल की हालत बयाँ नहीं होती

अब्दुल सलाम

महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई

अब्दुल मन्नान तरज़ी

न मोहतसिब की न हूर-ओ-जिनाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं

अब्दुल हमीद अदम

सो के जब वो निगार उठता है

अब्दुल हमीद अदम

जो भी तेरे फ़क़ीर होते हैं

अब्दुल हमीद अदम

ग़ुंचे का जवाब हो गया है

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

अपनी नाकाम तमन्नाओं का मातम न करो

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

शिकस्त-ए-व'अदा की महफ़िल अजीब थी तेरी

अब्दुल अहद साज़

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