महफ़िल Poetry (page 34)

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

अहमद हुसैन माइल

आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब

अहमद हुसैन माइल

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

अहमद फ़राज़

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा

अहमद फ़राज़

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

दोस्ती का हाथ

अहमद फ़राज़

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

अहमद फ़राज़

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की

अहमद फ़राज़

रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए

अहमद फ़राज़

न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए

अहमद फ़राज़

मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं

अहमद फ़राज़

ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें

अहमद फ़राज़

जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना

अहमद फ़राज़

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

मैं सोज़-ए-दरूँ अपना दिखा भी नहीं सकता

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

बे-हिसी इंसान का हासिल न हो

आग़ाज़ बरनी

बुतों के वास्ते तो दीन-ओ-ईमाँ बेच डाले हैं

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना

आग़ा हज्जू शरफ़

ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

शब-ए-सियाह पे वा रौशनी का बाब तो हो

आफ़ताब हुसैन

शब को पाज़ेब की झंकार सी आ जाती है

अफ़सर माहपुरी

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