महफ़िल Poetry (page 33)

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

सन्नाटा तूफ़ाँ से सिवा हो ये भी तो हो सकता है

अकबर अली खान अर्शी जादह

पेश जो आया सर-ए-साहिल शब बतलाया

अजमल सिराज

क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक

आजिज़ मातवी

मैं तकिए पर सितारे बो हा हूँ

ऐतबार साजिद

मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं

ऐश देहलवी

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

ऐनुद्दीन आज़िम

आवाज़ के सौदागरों में इतनी फ़नकारी तो है

ऐनुद्दीन आज़िम

रात अभी आधी गुज़री है

ऐन ताबिश

मेरी तन्हाई के एजाज़ में शामिल है वही

ऐन ताबिश

आवारा भटकता रहा पैग़ाम किसी का

ऐन ताबिश

बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई

ऐन इरफ़ान

तन्हा तन्हा सहमी सहमी ख़ामोशी

ऐन इरफ़ान

संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं

अहसन मारहरवी

मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए

अहसन मारहरवी

क्या पता किस जुर्म की किस को सज़ा देता हूँ मैं

अहमद ज़फ़र

शम्अ की तरह से जलना सीख औरों के लिए

अहमद शाहिद ख़ाँ

आना ज़रा तफ़रीह रहेगी

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले

अहमद राही

दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ

अहमद राही

दर्द की बात किसी हँसती हुई महफ़िल में

अहमद राही

क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले

अहमद राही

महफ़िल महफ़िल सन्नाटे हैं

अहमद राही

जिस राह से भी गुज़र गए हम

अहमद राही

दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है

अहमद राही

महफ़िल-ए-शब

अहमद नदीम क़ासमी

तेरी महफ़िल भी मुदावा नहीं तन्हाई का

अहमद नदीम क़ासमी

मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया

अहमद मुश्ताक़

चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया

अहमद मुश्ताक़

प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं

अहमद हुसैन माइल

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