आगे बढ़ने वाले

आगे बढ़ने वाले

बदन को कपड़ों पर ओढ़ते

और छुरियाँ तेज़ कर के निकलते हैं

भीड़ को चीर कर रास्ता बनाते

नाख़ुनों से नोच लेते हैं

लिबास और इज़्ज़तें-

सुर्ख़ मिर्चों से हर आँख को अंधा कर देते हैं

और बढ़ जाते हैं

रऊनत-भरी मुस्कुराहट के साथ

चीख़ते और चुप करा देते हैं

सर-ए-आम रक़्स करते हैं

और गाड़ियाँ टकरा जाती हैं

लड़के लड़ पड़ते

मर्द, पतलूनें कस लेते

और बूढ़े, तम्बाकू में

गुड़ की मिक़दार बढ़ा देते हैं

कोई मेज़ उन के सामने जमा नहीं रह सकता

और कोई महफ़िल

उन का दाख़िला रोक नहीं सकती

वो ठोकर से दरवाज़ा खोलते हैं

और हर कुर्सी उन के लिए ख़ाली हो जाती है

उन के दबदबे से

दीवारों के पलसतर उखड़ जाता है

काग़ज़, शोर करना भूल जाते हैं

और मौसम, इरादा तब्दील कर लेते हैं

आगे बढ़ने वालों से पनाह माँगते हैं

उन के साथ

डरते हैं

ज़मीन पर झुक कर चलने वाले

बोझल ख़ामोशी से उन्हें देखते

और गुज़र जाते हैं

आगे बढ़ने वाले नहीं जानते

कि आगे बढ़ा जा ही नहीं सकता

फिर भी वो बढ़ते हैं

पहुँच कर दम लेते हैं

बे-हयाई की शिद्दत

आँखों में

मोतिया उतरने की रफ़्तार तेज़ कर देती है

हर तने की छाल

बदन पर अन-मिट ख़राशें छोड़ जाती है

फिटकिरी और वेज़लीन से चिकनाया हुआ मास

हड्डियों से हमेशा जुड़ा नहीं रह सकता

हर बदन और हर कुर्सी की

एक उम्र हुआ करती है

और फिर हम उन्हें देख सकते हैं

एक दिन

लिपटे हुए लिबास में

ख़ला को घूरते हुए

किसी नीम-तारीक नशेब में

पर-कटे परिंदे की तरह

मिट्टी पर लोटते हुए

आगे बढ़ने की पैहम कोशिश में

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