महताब Poetry (page 4)

आज की रात

साबिर दत्त

हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे

रियाज़ मजीद

शायद अब रूदाद-ए-हुनर में ऐसे बाब लिखे जाएँगे

राज़ी अख्तर शौक़

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

रासिख़ फारानी

बात सूरज की कोई आज बनी है कि नहीं

रशीद क़ैसरानी

हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे

रम्ज़ी असीम

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

सच्चाई

रईस फ़रोग़

मोहब्बत ये बता क्या सिलसिला है

रहमान ख़ावर

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी

इंशा अल्लाह ख़ान

अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब

इन्दिरा वर्मा

मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक

इमरान-उल-हक़ चौहान

सितारे सब मिरे महताब मेरे

इमरान शनावर

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल

इफ़्तिख़ार मुग़ल

रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

ये तिरा बाँकपन ये रानाई

इफ़्तिख़ार जमील शाहीन

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई

हुमैरा राहत

अन-कही

हिमायत अली शाएर

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी

हसन नईम

रात ये कौन मिरे ख़्वाब में आया हुआ था

हसन अब्बासी

रात ढलते ही सफ़ीरान-ए-क़मर आते हैं

हनीफ़ फ़ौक़

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