नाम Poetry (page 38)

सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से

रईस फ़रोग़

किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

चंद बेनाम-ओ-निशाँ क़ब्रों का

रईस अमरोहवी

अहरमन है न ख़ुदा है मिरा दिल

रईस अमरोहवी

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल उन की याद से जो बहलता चला गया

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

मोहब्बत ये बता क्या सिलसिला है

रहमान ख़ावर

हर दौर में हर अहद में ताबिंदा रहेंगे

राही शहाबी

हर दौर में हर अहद में ताबिंदा रहेंगे

राही शहाबी

बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है

राही शहाबी

बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए

राही फ़िदाई

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है

इरम ज़ेहरा

हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए

इरम लखनवी

उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में

इक़बाल सुहैल

मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन

इक़बाल साजिद

अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का

इक़बाल साजिद

लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की

इक़बाल साजिद

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