भूमिका Poetry (page 17)

जब कभी यादों का दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

रौनक़ दकनी

ममनूँ ही रहा उस बुत-ए-काफ़िर की जफ़ा का

रासिख़ अज़ीमाबादी

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

आस-महल

राशिद हसन राना

ज़माना गुज़रा है लहरों से जंग करते हुए

राशिद अनवर राशिद

उफ़ुक़ के उस पार

राशिद आज़र

मालूम है वो मुझ से ख़फ़ा है भी नहीं भी

राशिद आज़र

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

हैं सर-निगूँ जो ताना-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से हम

रशीद रामपुरी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

मुँह किस तरह से मोड़ लूँ ऐसे पयाम से

रशीद क़ैसरानी

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

रशीद क़ैसरानी

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया

रशीद कामिल

जी चाहा जिधर छोड़ दिया तीर अदा को

रसा रामपुरी

बहुत दिनों में ये उक़्दा खुला कि मैं भी हूँ

रसा चुग़ताई

दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती

रम्ज़ी असीम

अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ

राम रियाज़

मोहब्बत हासिल-ए-दुनिया-ओ-दीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मियाँ के दोस्त

राजा मेहदी अली ख़ाँ

कोई पत्थर ही किसी सम्त से आया होता

राज नारायण राज़

बाहम सुलूक-ए-ख़ास का इक सिलसिला भी है

राज नारायण राज़

ज़ौक़-ए-सुजूद ले गया मुझ को कहाँ कहाँ

राज कुमार सूरी नदीम

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