उम्र Poetry (page 67)

परों में शाम ढलती है

अब्बास ताबिश

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है

अब्बास ताबिश

तमाम उम्र की बे-ताबियों का हासिल था

अब्बास रिज़वी

मैं उस से दूर रहा उस की दस्तरस में रहा

अब्बास रिज़वी

जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया

अब्बास रिज़वी

नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था

अब्बास दाना

किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना

अब्बास अली ख़ान बेखुद

थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई

आज़िम कोहली

किधर का था किधर का हो गया हूँ

आज़िम कोहली

ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह

अातिश बहावलपुरी

कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला

अातिश बहावलपुरी

इंतिहा होने से पहले सोच ले

अस्नाथ कंवल

आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

आलोक श्रीवास्तव

तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते

आल-ए-अहमद सूरूर

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला

आल-ए-अहमद सूरूर

सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

यही नहीं कि फ़क़त प्यार करने आए हैं

आग़ा निसार

क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं

आफ़ाक़ सिद्दीक़ी

गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन

ए जी जोश

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