उम्र Poetry (page 2)

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

जब बच्चों को देखता हूँ तो सोचता हूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

चराग़-ए-कुश्ता से क़िंदील कर रहा है मुझे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

पैग़ाम

ज़िया जालंधरी

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

क़िस्सा गुल-बादशाह का

ज़ेहरा निगाह

बिल्ली

ज़ेहरा निगाह

हम लोग जो ख़ाक छानते हैं

ज़ेहरा निगाह

एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की

ज़ेहरा निगाह

नीम तारीक मोहब्बत

ज़ीशान साहिल

ख़ुद-कुशी

ज़ीशान साहिल

एक मोहब्बत

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

किसी की देन है लेकिन मिरी ज़रूरत है

ज़ीशान साहिल

गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे

ज़ीशान साहिल

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

ग़ुबार-ए-इश्क़ से हस्ती को भरने वाला हूँ मैं

ज़ीशान साजिद

उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या

ज़ेब ग़ौरी

क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे

ज़रीफ़ लखनवी

महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया

ज़रीफ़ लखनवी

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

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