उठो Poetry (page 6)

नज़्म

सईदुद्दीन

लोहे का लिबास

सईदुद्दीन

यक़ीं उठ जाए अपने दस्त-ओ-पा से

सईद अख़्तर

ये किस के हुस्न की जल्वागरी है

सईद अख़्तर

होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया

सईद अहमद

देखो ऐसा अजब मुसाफ़िर फिर कब लौट के आता है

साबिर वसीम

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

साबिर

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

सबा नुसरत

आँखों से वो कभी मिरी ओझल नहीं रहा

सअादत सईद

ज़ालिम पे अज़ाब हो गया हूँ

रूही कंजाही

तिलिस्म-ए-नश्शा-ए-दुनिया भी आज ख़त्म हुआ

रोहित सोनी ‘ताबिश’

दिल जो घबराया तो उठ कर दोस्तों में आ गया

रियाज़ साग़र

गाए

रियाज़ लतीफ़

अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में

रियाज़ ख़ैराबादी

वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो

रियाज़ ख़ैराबादी

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में

रिन्द लखनवी

शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा

रेहाना रूही

तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है

रज़िया हलीम जंग

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

मुहक़क़िक़

रज़ा नक़वी वाही

टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा

रज़ा अज़ीमाबादी

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