उठो Poetry (page 8)
गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान
शाख़-ए-अदम
इंजिला हमेश
और तो कोई था नहीं शायद
इंद्र सराज़ी
दिन में जो साथ सब के हँसता था
इंद्र सराज़ी
अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं
इमरान-उल-हक़ चौहान
सूदी बेगम
इमरान शमशाद
मर ही कर उट्ठेंगे तेरे दर से हम
इम्दाद इमाम असर
झूटे वादों पर तुम्हारी जाएँ क्या
इम्दाद इमाम असर
जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़
इमदाद अली बहर
आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब
इमदाद अली बहर
ज़ोर है गर्मी-ए-बाज़ार तिरे कूचे में
इमाम बख़्श नासिख़
इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो
इफ़्तिख़ार राग़िब
मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था
इदरीस बाबर
दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
इब्राहीम अश्क
दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया
इब्राहीम अश्क
दिल पीत की आग में जलता है
इब्न-ए-इंशा
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
इब्न-ए-इंशा
जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे
हुसैन ताज रिज़वी
का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम
हातिम अली मेहर
दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका
हातिम अली मेहर
क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके
हसरत मोहानी
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं
हसरत जयपुरी
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं
हसरत जयपुरी
फिरी सी देखता हूँ इस चमन की कुछ हवा बुलबुल
हसरत अज़ीमाबादी
आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर
हसरत अज़ीमाबादी
तल्ख़ियाँ रह जाएँगी लफ़्ज-ए-वफ़ा रह जाएगा
हसन निज़ामी
उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं
हसन नईम
मैं किस वरक़ को छुपाऊँ दिखाऊँ कौन सा बाब
हसन नईम
कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया
हसन नईम
ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
हसन नईम
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