दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया
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दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया
मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था
मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो
बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा
रात भर तन्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था
शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या
चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
किस लिए कतरा के जाता है मुसाफ़िर दम तो ले
नाम को भी न किसी आँख से आँसू निकला
लबों पर प्यास हो तो आस के बादल भरे रखियो
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे