ये किस के हुस्न की जल्वागरी है

ये किस के हुस्न की जल्वागरी है

जहाँ तक देखता हूँ रौशनी है

अगर होते नहीं हस्सास पत्थर

तिरी आँखों में ये कैसी नमी है

यक़ीं उठ जाए अपने दस्त-ओ-पा से

उसी का नाम लोगो ख़ुद-कुशी है

अगर लम्हों की क़ीमत जान जाएँ

हर इक लम्हे में पोशीदा सदी है

तुझे भी मुँह के बल गिरना पड़ेगा

अभी तो सर से टोपी ही गिरी है

तअल्लुक़ तुझ से रख कर इतना समझे

हमारी साँप से भी दोस्ती है

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In Hindi By Famous Poet Saeed Akhtar. is written by Saeed Akhtar. Complete Poem in Hindi by Saeed Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.