पर्दा Poetry (page 16)

साक़ी-नामा

अल्लामा इक़बाल

रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है

अल्लामा इक़बाल

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

इबलीस की मजलिस-ए-शूरा

अल्लामा इक़बाल

फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं

अल्लामा इक़बाल

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

अल्लामा इक़बाल

राह में हक़ के अज़ीज़ाँ आप को क़ुर्बां करो

अलीमुल्लाह

ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें

अली ज़हीर लखनवी

सर-ए-तूर

अली सरदार जाफ़री

ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा

अली अख़्तर अख़्तर

तलाश-ए-आख़र

अली अकबर अब्बास

मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था

आलमताब तिश्ना

शाम

अख़्तर उस्मान

नन्हा क़ासिद

अख़्तर शीरानी

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं

अख़्तर शीरानी

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

अख़्तर शीरानी

आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम

अख़्तर शीरानी

दिल वो प्यासा है कि दरिया का तमाशा देखे

अख़तर इमाम रिज़वी

नहीं आसान तर्क-ए-इश्क़ करना दिल से ग़म जाना

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

हंगामा-ए-आफ़ात इधर भी है उधर भी

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़

अकबर इलाहाबादी

मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़

अकबर इलाहाबादी

जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा

अजमल सिराज

मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी

मुख़ालिफ़ आँधियों में अज़्म के दीपक जलाता हूँ

अजीत सिंह हसरत

कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम

ऐश देहलवी

पाँव फँसे में हाथ छुड़ाने आया था

ऐनुद्दीन आज़िम

सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में

अहसन मारहरवी

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