पर्दा Poetry (page 3)

यौम-ए-आज़ादी

सिराज लखनवी

गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ

सिराज लखनवी

फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है

सिराज लखनवी

बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया

सिराज लखनवी

शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी

सिराज औरंगाबादी

ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही

सिराज औरंगाबादी

ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं

शुजा ख़ावर

न ख़ून-ए-दिल है न मय का ख़ुमार आँखों में

शोला अलीगढ़ी

ख़ुशी में ग़म मिला लेते हैं थोड़ा

शोएब निज़ाम

अंदोह-ए-बेश-ओ-कम न ग़म-ए-ख़ैर-ओ-शर में है

शिव दयाल सहाब

अदल-ए-जहाँगीरी

शिबली नोमानी

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया

शेवन बिजनौरी

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं

ज़ौक़

नाला इस शोर से क्यूँ मेरा दुहाई देता

ज़ौक़

मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते

ज़ौक़

बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही

ज़ौक़

इधर माइल कहाँ वो मह-जबीं है

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

किसी के साथ अब साया नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम

सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है

शाज़ तमकनत

सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है

शाज़ तमकनत

शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना

शाज़ तमकनत

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है

शाज़ तमकनत

एक आसेब का साया था जो सर से उतरा

शौकत काज़मी

मिरे दिल पे तेरा क़ब्ज़ा मिरा इख़्तियार तू है

शातिर हकीमी

तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है

शारिक़ कैफ़ी

रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही

शरफ़ मुजद्दिदी

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