पर्दा Poetry (page 5)

वस्ल में बेकार है मुँह पर नक़ाब

शाद लखनवी

जान या दिल नज़्र करना चाहिए

शाद लखनवी

हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में

शाद लखनवी

हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं

शबनम शकील

उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठा

शाद आरफ़ी

जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया

शाद आरफ़ी

हसीनों के तबस्सुम का तक़ाज़ा और ही कुछ है

सेहर इश्क़ाबादी

मज़ा जब है उसे बर्क़-ए-तजल्ला देखने वाले

सीमाब बटालवी

शायद जगह नसीब हो उस गुल के हार में

सीमाब अकबराबादी

नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी

सीमाब अकबराबादी

दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए

सीमाब अकबराबादी

आ अपने दिल में मेरी तमन्ना लिए हुए

सीमाब अकबराबादी

लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

चाँद निकले न कहीं यार पुराने निकले

सरवर नेपाली

ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला

सरवर आलम राज़

आँखों में अगर आप की सूरत नहीं होती

सरफ़राज़ अबद

परिंदा कमरे में रह गया

सारा शगुफ़्ता

साए का सफ़र

साक़ी फ़ारुक़ी

आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था

समद अंसारी

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

सलीम कौसर

याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा

सैफ़ुद्दीन सैफ़

दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम

सैफ़ुद्दीन सैफ़

वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं

सैफ़ बिजनोरी

ताज-महल

साहिर लुधियानवी

इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के

साहिर लुधियानवी

चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है

साहिर लुधियानवी

समद को सरापा सनम देखते हैं

साहिर देहल्वी

कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था

साहिर देहल्वी

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