पर्दा Poetry (page 6)

काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया

साहिर देहल्वी

जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है

साहिर देहल्वी

दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़

साहिर देहल्वी

असासा

साहिल अहमद

हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है

साहिबा शहरयार

हर एक बंदिश-ए-ख़ुद-साख़्ता बयाँ से उठा

सहबा वहीद

कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो

साग़र आज़मी

फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में

साग़र आज़मी

शम-ए-हसरत जला गए आँसू

सफ़िया शमीम

देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का

सफ़ी लखनवी

अपनी तलाश में निकले

सईद नक़वी

जान गए तो मान लिया

सबीहा सबा, पाकिस्तान

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

एक न्यूक्लेयर नज़्म

रियाज़ लतीफ़

ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में

रियाज़ ख़ैराबादी

वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है

रियाज़ ख़ैराबादी

बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते

रियाज़ ख़ैराबादी

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है

रिफ़अत सेठी

लोग उट्ठे हैं तिरी बज़्म से क्या क्या हो कर

रिफ़अत सेठी

बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन

रिफ़अत सरोश

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

हसीन दुनिया उजड़ गई तो

रेहान अल्वी

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

राज़िक़ अंसारी

यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया

रज़ा अज़ीमाबादी

शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का

रज़ा अज़ीमाबादी

मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से

रज़ा अज़ीमाबादी

जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया

रज़ा अज़ीमाबादी

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