पूर्व Poetry (page 13)

सुब्ह सफ़र और शाम सफ़र

अब्दुल मन्नान तरज़ी

कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

अफ़्साना चाहते थे वो अफ़्साना बन गया

अब्दुल हमीद अदम

आप की आँख अगर आज गुलाबी होगी

अब्दुल हमीद अदम

यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें

अब्दुल अहद साज़

परों में शाम ढलती है

अब्बास ताबिश

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है

आल-ए-अहमद सूरूर

ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया

आल-ए-अहमद सूरूर

इन परी-रूयों की ऐसी ही अगर कसरत रही

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

आँखों पे वो ज़ुल्फ़ आ रही है

आग़ा अकबराबादी

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