पहलू Poetry (page 18)

मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

मुसलमाँ काफ़िरों में हूँ मुसलामानों में काफ़िर हूँ

अहमद हुसैन माइल

क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

तेरी बातें ही सुनाने आए

अहमद फ़राज़

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अहमद फ़राज़

इब्न-ए-आदम बरसर पैकार है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो

आग़ा हज्जू शरफ़

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

आग़ा हज्जू शरफ़

वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले

आग़ा हज्जू शरफ़

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

आग़ा हज्जू शरफ़

हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को लटका लिया है गेसू में

आग़ा हज्जू शरफ़

पेश आने लगे हैं नफ़रत से

अफ़ज़ल पेशावरी

गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

धूप जब ढल गई तो साया नहीं

आफ़ताब हुसैन

शब ढली मेरी और सहर न हुई

अफ़ीफ़ सिराज

तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को

आदिल मंसूरी

वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर

आदिल मंसूरी

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

आदिल मंसूरी

चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का

अदीम हाशमी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा

अबरार आज़मी

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

पंछियों के रू-ब-रू क्या ज़िक्र-ए-नादारी करूँ

अब्दुर्रहीम नश्तर

साकिन है कोई और वतन और किसी का

अब्दुल वहाब सुख़न

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