तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा
किसी की याद का नश्शा शराब जैसा था
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पोस्टर पर एक ख़बर
एहसास
मुझे भी फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल न थी
सन्नाटे का दर्द निखारा करता हूँ
नज़्म
एक वाक़िआ
ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए
किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा
शायद तुम्हारी याद मिरे पास आ गई
बहुत तज़्किरा दास्तानों में था
कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था