मुझे भी फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल न थी
और उस को पास किसी और के भी जाना था
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ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था
तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा
मैं ने कल तोड़ा इक आईना तो महसूस हुआ
पोस्टर पर एक ख़बर
परिंदे फ़ज़ाओं में फिर खो गए
एहसास
एक वाक़िआ
शायद तुम्हारी याद मिरे पास आ गई
बहुत तज़्किरा दास्तानों में था
उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था
ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए
तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था