वो जो पेड़ खड़ा है लोगो
ऊँचा काला
लहरा कर के पास बुलाता
उस के ठंडे साए में
मत रुकना लोगो
उस का ये साया मुतहर्रिक है
Parveen Shakir
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नज़्म
उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था
कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था
परिंदे फ़ज़ाओं में फिर खो गए
ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था
बहुत तज़्किरा दास्तानों में था
तुम्हारी बज़्म में जिस बात का भी चर्चा था
चेहरों के मैले जिस्मों के जंगल थे हर जगह
आवाज़ों का बोझ उठाए सदियों से
शायद तुम्हारी याद मिरे पास आ गई
मुझे भी फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल न थी