फूल Poetry (page 33)

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गुलज़ार

एक ख़्वाब

गुलज़ार

कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे

गुलज़ार

याद नहीं है

गुलनाज़ कौसर

दिल का हर ज़ख़्म तिरी याद का इक फूल बने

गुलनार आफ़रीन

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहते हैं इन शाख़ों पर फल फूल भी आते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहफ़-उल-क़हत

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बन में वीराँ थी नज़र शहर में दिल रोता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ

ग़ुलाम मौला क़लक़

उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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