नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला
आज फिर शबनमीं आँखों से वरक़ धोता है
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सायों की ज़द में आ गईं सारी ग़ुलाम-गर्दिशें
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
उम्मीद की सूखती शाख़ों से सारे पत्ते झड़ जाएँगे
फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था
अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे
याद अश्कों में बहा दी हम ने
पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
सोचा है तुम्हारी आँखों से अब मैं उन को मिलवा ही दूँ
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी