फूल Poetry (page 36)

ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ

फ़रहत एहसास

खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से ग़ुलाम हो गया

फ़रहत एहसास

हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है

फ़रहत एहसास

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

फ़रहत एहसास

शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं

फ़रहान सालिम

तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं

फ़रीद परबती

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

फ़रीद जावेद

किस से वफ़ा की है उमीद कौन वफ़ा-शिआर है

फ़रीद जावेद

किस से वफ़ा की है उमीद कौन वफ़ा-शिआ'र है

फ़रीद जावेद

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

बे-बाक अँधेरे

फ़रीद इशरती

है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं

फ़रीद इशरती

ज़माना झुक गया होता अगर लहजा बदल लेते

फ़रह इक़बाल

ख़ुद ही दिया जलाती हूँ

फ़रह इक़बाल

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ग़म हर इक आँख को छलकाए ज़रूरी तो नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

माइल-ब-करम मुझ पर हो जाएँ तो अच्छा हो

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

मुश्किल से चमन में हमें एक बार मिला फूल

फख्र ज़मान

ग़ज़लें लिख लिख पागल होने वाला हूँ

फख़्र अब्बास

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

बस यही सोच के रहता हूँ मैं ज़िंदा इस में

फ़ैज़ान हाशमी

बहुत सा काम तो पहले ही कर लिया मैं ने

फ़ैज़ान हाशमी

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

लगा कि जैसे किसी काँपते हिरन को छुआ

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

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