फूल Poetry (page 54)

वो दुश्मन-ए-जाँ जान से प्यारा भी कभी था

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

अहमद फ़राज़

मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला

अहमद फ़राज़

जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे

अहमद फ़राज़

जो भी दरून-ए-दिल है वो बाहर न आएगा

अहमद फ़राज़

गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा

अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अहमद फ़राज़

वही दरिंदा

अहमद आज़ाद

ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं

अहमद अता

हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं

अहमद अता

दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं

अहमद अता

उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के सदमे से हिल रहा है

आग़ा हज्जू शरफ़

पानी शजर पे फूल बना देखता रहा

अफ़ज़ाल नवेद

उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

मैं अपने दिल में नई ख़्वाहिशें सजाए हुए

अफ़ज़ल मिनहास

गुम-सुम हवा के पेड़ से लिपटा हुआ हूँ में

अफ़ज़ल मिनहास

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

कभी न ख़ुद को बद-अंदेश-ए-दश्त-ओ-दर रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

किसी तरह भी तो वो राह पर नहीं आया

आफ़ताब हुसैन

हर फूल है हवाओं के रुख़ पर खिला हुआ

आफ़ताब हुसैन

वतन का राग

अफ़सर मेरठी

मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा

अफ़रोज़ आलम

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

वो जान-ए-नौ-बहार जिधर से गुज़र गया

आदिल मंसूरी

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