फूल Poetry (page 53)

ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे

अहमद मुश्ताक़

तिरे दीवाने हर रंग रहे तिरे ध्यान की जोत जगाए हुए

अहमद मुश्ताक़

शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया

अहमद मुश्ताक़

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

अहमद मुश्ताक़

लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए

अहमद मुश्ताक़

इक फूल मेरे पास था इक शम्अ' मेरे साथ थी

अहमद मुश्ताक़

दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है

अहमद मुश्ताक़

छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से

अहमद मुश्ताक़

छट गया अब्र शफ़क़ खुल गई तारे निकले

अहमद मुश्ताक़

चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले

अहमद मुश्ताक़

बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता

अहमद मुश्ताक़

बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा

अहमद मुश्ताक़

कह डाले ग़ज़लों नज़्मों में अफ़्साने क्या क्या

अहमद मासूम

ज़ख़्म खाना ही जब मुक़द्दर हो

अहमद महफ़ूज़

महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक

अहमद ख़याल

मिरे अंदर रवानी ख़त्म होती जा रही है

अहमद ख़याल

जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया

अहमद ख़याल

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है

अहमद कमाल परवाज़ी

निहाल-ए-वस्ल नहीं संग-बार करने को

अहमद जावेद

ज़ंजीरों से बँधा हुआ हर एक यहूदी तकता था

अहमद जहाँगीर

बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा

अहमद हुसैन माइल

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

अहमद फ़रहाद

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है

अहमद फ़राज़

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं

अहमद फ़राज़

सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया

अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अहमद फ़राज़

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

काली दीवार

अहमद फ़राज़

हमदर्द

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

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