सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
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किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए
ईद-कार्ड
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
दिल का दुख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें
हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें