सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3522) Peoples Rate This
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ
दिल का दुख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी
क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए
मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं
उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
इस अहद-ए-ज़ुल्म में मैं भी शरीक हूँ जैसे