ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
कि तेरा देखना देखा न जाए
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Gulzar
Jaun Eliya
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टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'
वो अपने ज़ोम में था बे-ख़बर रहा मुझ से
कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी
हच-हाईकर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
ज़ेर-ए-लब
ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें
अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था
फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं