टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'
मेरे बदन पे जैसे शिकस्तों का जाल हो
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सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
सफ़ेद छड़ियाँ
पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई
मेरी ख़ातिर न सही अपनी अना की ख़ातिर
तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
तख़्लीक़
ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है