ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसाँ जानाँ
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हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
हम को उस शहर में तामीर का सौदा है जहाँ
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
फ़ज़ा उदास है रुत मुज़्महिल है मैं चुप हूँ
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
तेरी बातें ही सुनाने आए
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
सवाल
ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें