ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
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Habib Jalib
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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ये अब जो आग बना शहर शहर फैला है
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
वो वक़्त आ गया है कि साहिल को छोड़ कर
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है
कर गए कूच कहाँ
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
दोस्ती का हाथ