हम को उस शहर में तामीर का सौदा है जहाँ
लोग मेमार को चुन देते हैं दीवार के साथ
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बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'
रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए
सुकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ
ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा
सरहदें
वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबला-पाई ले ले
इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए
'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़'
नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
मयूरका