हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
Ahmad Faraz
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Gulzar
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Anwar Masood
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कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी
मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को