सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
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Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
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जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'
कर गए कूच कहाँ
ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ