जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए
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कनीज़
अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
हम तो ख़ुश थे कि चलो दिल का जुनूँ कुछ कम है
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब
दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए
जब तिरी याद के जुगनू चमके
सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
जब भी दिल खोल के रोए होंगे
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है