जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1846) Peoples Rate This
सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी
देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी
शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
फ़ज़ा उदास है रुत मुज़्महिल है मैं चुप हूँ
क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
'फ़राज़' तर्क-ए-तअल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा