आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
Mir Taqi Mir
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Parveen Shakir
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Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
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ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए
इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा
चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या
काली दीवार
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
जब तिरी याद के जुगनू चमके
ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं
हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग