इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2200) Peoples Rate This
सरहदें
काली दीवार
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अभी हम ख़ूबसूरत हैं
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो
तेरी बातें ही सुनाने आए
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा
ऐ मेरे सारे लोगो
'फ़राज़' तू ने उसे मुश्किलों में डाल दिया