बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
Wasi Shah
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Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो
वो सामने हैं मगर तिश्नगी नहीं जाती
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
वापसी
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर