वो सामने हैं मगर तिश्नगी नहीं जाती
ये क्या सितम है कि दरिया सराब जैसा है
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(5264) Peoples Rate This
मुहासरा
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
रात भर हँसते हुए तारों ने
उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी
ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा
सवाल