हत्या Poetry (page 6)

उल्फ़त न करूँगा अब किसी की

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है

रिन्द लखनवी

वक़्त ख़ुश-ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रियाज़ मजीद

शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा

रेहाना रूही

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

तुम किसी तौर किसी शक्ल नहीं कर सकते

राज़िक़ अंसारी

मैं जब भी क़त्ल हो कर देखता हूँ

राज़ी अख्तर शौक़

जिस ने बनाया हर आईना मैं ही था

राज़ी अख्तर शौक़

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का

रज़ा अज़ीमाबादी

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

हम उन को हाल-ए-दिल अपना सुनाए जाते हैं

रौनक़ टोंकवी

दौड़े वो मेरे क़त्ल को तलवार खींच कर

रौनक़ टोंकवी

शर्तों पे अपनी खेलने वाले तो हैं वही

रऊफ़ ख़ैर

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं

रशीद रामपुरी

उक़्दे उल्फ़त के सब ऐ रश्क-ए-क़मर खोल दिए

रशीद लखनवी

शुरूअ' अहल-ए-मोहब्बत के इम्तिहान हुए

रशीद लखनवी

हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए

रशीद लखनवी

दुश्मन की बात जब तिरी महफ़िल में रह गई

रसा रामपुरी

क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं

रजब अली बेग सुरूर

मियाँ के दोस्त

राजा मेहदी अली ख़ाँ

मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ

रईस फ़रोग़

हवा ने बादल से क्या कहा है

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

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