जजमेंट डे Poetry (page 6)

तुम कि बैठे हुए इक आफ़त हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रोना वही जो ख़ौफ़-ए-इलाही से रोइए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

बुलंदी की पैमाइश

शहज़ाद नय्यर

छोड़ कर वो हम को तन्हा किस जहाँ में जा बसा

शहज़ाद हुसैन साइल

दिल पे ऐ दोस्त क़यामत सी गुज़र जाती है

शहज़ाद अहमद

वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो

शहज़ाद अहमद

मैं कि ख़ुश होता था दरिया की रवानी देख कर

शहज़ाद अहमद

मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो

शहज़ाद अहमद

जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी

शहज़ाद अहमद

फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने

शहज़ाद अहमद

भटकती हैं ज़माने में हवाएँ

शहज़ाद अहमद

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

फ़ज़ा-ए-मय-कदा बे-रंग लग रही है मुझे

शहरयार

निशात-उस्सानिया

शहनाज़ नबी

कुछ दर्द बढ़ा है तो मुदावा भी हुआ है

शाहिद माहुली

ज़ख़्म-ए-जिगर को दस्त-ए-जराहत से पूछिए

शाहिद कमाल

मिसाल-ए-संग-ए-तपीदा जड़े हुए हैं कहीं

शाहीन मुफ़्ती

मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था

शाहीन अब्बास

ऐसे रखती है हमें तेरी मोहब्बत ज़िंदा

शहबाज़ ख़्वाजा

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

पामाल-ए-राह-ए-इश्क़ हैं ख़िल्क़त की खा ठोकर भी हम

शाह नसीर

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

शाह दीन हुमायूँ

ऐन मुमकिन है किसी रोज़ क़यामत कर दें

शगुफ़्ता अल्ताफ़

क़ुर्बत-ए-हुस्न में भी दर्द के आसार मिले

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

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