जजमेंट डे Poetry (page 8)

इन को नफ़रत इसे क्या कहते हैं

सख़ी लख़नवी

सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या क़यामत है हिज्र के दिन भी

सैफ़ुद्दीन सैफ़

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया

सैफ़ुद्दीन सैफ़

गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

दिल में रहना है परेशान ख़यालों का हुजूम

साइब आसमी

तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए

साहिर लुधियानवी

मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी

साहिर लुधियानवी

जला है किस क़दर दिल ज़ौक़-ए-काविश-हा-ए-मिज़्गाँ पर

साहिर देहल्वी

अस्ल में मौत तो ख़ुशियों की घड़ी है यारो

सहर महमूद

अपने ख़ूँ से जो हम इक शम्अ जलाए हुए हैं

सहर अंसारी

दिल्ली की लड़कियाँ

साग़र ख़य्यामी

उठ चले वो तो इस में हैरत क्या

साग़र ख़य्यामी

जान जाने को है और रक़्स में परवाना है

साग़र ख़य्यामी

शम-ए-हसरत जला गए आँसू

सफ़िया शमीम

उर्दू-ए-मुअ'ल्ला

सफ़ी लखनवी

जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो

सफ़ी लखनवी

जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ

सईद नक़वी

फ़सील-ए-ज़ात में दर तो तिरी इनायत है

सईद नक़वी

रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

वो एक चेहरा जो उस से गुरेज़ कर जाता

सादिक़

करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में

साबिर वसीम

ये सैल-ए-अश्क मुझे गुफ़्तुगू की ताब तो दे

सबिहा सबा, न्यूयार्क

तुझ से दूरी और क़यामत लगती है

सबा नुसरत

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

सबा नुसरत

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं

सबा अकबराबादी

उस का वादा ता-क़यामत कम से कम

सबा अकबराबादी

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