जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ
तो शहर-ए-ज़ात में रहना भी इक क़यामत है
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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रस्ते लपेट कर सभी मंज़िल पे लाए हैं
अपनी तलाश में निकले
मैं अपने सारे सवालों के जानता हूँ जवाब
चीज़ें अपनी जगह पे रहती हैं
कुछ लोग थे सफ़र में मगर हम-ज़बाँ न थे
वरक़ वरक़ से नया इक जवाब माँगूँ मैं
फ़सील-ए-ज़ात में दर तो तिरी इनायत है
मैं दोस्त से न किसी दुश्मनी से डरता हूँ
किया है ख़ुद ही गिराँ ज़ीस्त का सफ़र मैं ने
पहले तो जस्ता जस्ता भूल गया
पिकासो का मशवरा
काला मोतिया